Mai Maati sa...


 वो चाँद तारों की बात करता है

 मैं ज़मीन पे बिखरा धूल सा.

 उसे उड़ना है पसंद 

 मेरी हद आषाढ़ तक

 उसे बारिश है पसंद

 मैं सावन की गलियों में

 लिपटा माटी के कर्ण कर्ण सा

 उसे आकाश की चाहत है

 मैं धरा से लिपटा शिथिल लिबास सा

 वह है अभिन्न, मैं शीतल जल सा शांत

 उसे देख हवाएँ शोर करें 

 मैं कर्ण कर्ण में बिखर जाऊं

वो चाँद तारों की बात करे

 मैं ज़मीन पे बिखरा माटी सा...

   

                                                       :- Puskar Srivastava


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